Tuesday 22 September 2020

 सब अपना मिटा कर वो ज़िंदा क्यों थी...वो खड़ी थी जिस्म के बाज़ार मे,इक बिकी हुई किसी की 


जरुरत थी...किसी ने उस को नाम दिया बाज़ारू तो किसी के लिए वो जवानी का कोई कीमती फूल 


थी...जिस ने भी रौंदा जिस्म उस का,साथ मे उस की आत्मा को भी रौंदा था...सब गवां कर भी वो 


हिम्मत का जामा पहने थी...इक रोज़ संग अपने, अपने जैसो को ले वो भाग निकली थी..पिंजरे से वो 


अब आज़ाद थी पर अपने साथ कितनो की जान मसरूफ कर आई थी...नारी का रूप ऐसा देख यह 


ज़माना क्यों हैरान है..अरे तुम जैसो ने ही बिठाया था उस को बाजार मे तो अब क्यों हैरान हो...झुका 


लो सर अपना शर्म से कि यह नारी अब अबला नहीं..अपनी हिफाज़त के लिए वो झाँसी की रानी भी है 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...