''सरगोशियां'' प्रेम के रस मे डूबी तो प्रेम को शुद्ध से भी परिशुद्ध कर दिया...प्रेम का हर रूप लिखा और
प्रेम को अमर कर दिया...वो प्रेम जो पवित्र रहा,राधा के मन जैसा...प्रेम जो बहता रहा गंगा के पावन
जल जैसा...मिठास प्रेम की कितनो ने पढ़ी,पर फिर भी जीवन की डगर किस ने सीखी...''सरगोशियां''
की कलम फिर तल्ख़ी से भरी और स्याही सबक देने वाली भरी...समाज को उस का आईना दिखाया
औरत के दर्द पे खुल के चली...पुरुष-स्त्री के संबंधों पे डट के खड़ी...''सरगोशियां'' है मजबूत बड़ी...
हज़ारो ने इस के शब्दों को पढ़ा..जिन के दिल है मानवता से भरे वो ''सरगोशियां'' के शब्दों पे दिल
हार गए..जो अंदर से कायर रहे वो इन शब्दों को सच अपना मानने लगे..यारों..''सरगोशियां'' है ही
ऐसी,साफ़ सरल चपल और सभी से जुड़ती हुई....इंसानो की बस्ती मे कुछ शैतान भी है भरे...मेरी
''सरगोशियां'' उन के लिए भी खड़ी है हाथ जोड़े...नेक बने सभ्य बने..ज़िंदगी देखिए ना कितनी ही
खूबसूरत है.........