Tuesday, 15 September 2020

 शून्य मे डूबी वो निस्तेज आंखे,जो कभी भरी थी रसीली ख़ुशी से...वो देह जो होती थी कभी खूबसूरती 


की मिसाल,आज बिस्तर पे थी कितने ही दुःखो से घिरी...अपने पिया की खिदमत मे जो रहती थी हर 


वक़्त खड़ी,आज बेबस और लाचार है अपने ही पैरों की कमजोर कड़ी से बंधी...वो उस का साजन,आज 


भी उस को बेइंतिहा प्यार करता है...वो उस को आज भी अपना रब समझता है...खुद भी है उम्र की उस 


दहलीज़ पे जहां उस को अपने साथी की बहुत जरुरत है...हाल उस का क्या कहे यारों,वो तो उस बेबस 


के लिए आज भी पागल और दीवाना है...वो अपने पिया को पहचानती तक नहीं मगर उस का पिया 


आज भी उस की शून्य आँखों का दीवाना है...परिशुद्ध से भी परिशुद्ध प्रेम की यह मिसाल भी बेमिसाल 


है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...