कूड़े के ढेर से खाने को कुछ ढूढ़ती वो किसी की नन्ही सी आबरू थी... आज क्यों कचरे के ढेर से वो
कुछ खाने को मजबूर थी...बला का नूर था उस के मासूम चेहरे पे...अमीरी की चमक से वो भरपूर थी..
अपनों की तलाश मे अब वो थक कर बेहद चूर थी..उस को शायद अभी तक यह मालूम ना था कि वो
अब अनाथ थी..पर कुदरत के आने वाले फैसले से भी वो अनजान थी..फिर दो हाथ ऐसे मिले कि वो
उन की धरोधर हो गई..बेशक अमीरी ना थी पास उन के पर उन की ममता के आंचल तले वो बहुत
सुरक्षित और खुशहाल थी...