किस बात से वो रोई थी...किस का सज़दा कर के वो सोई थी...प्यार की चोट इतनी गहरी चुभी कि वो
हज़ारो कदम पीछे लौट आई थी...नाता-रिश्ता अब ना होगा,खुदा अपने से वादा कर वो तड़प के चीखी
थी...उस की शिद्दत वो ना समझ पाया था...कैसे बताती उसे कि उस की बेरुखी ने उस को मार डाला
था...हमेशा कहती रही,ना बना मुझे महारानी कभी ना समझ नौकरानी कभी...जितना भी दे,हद मे दे...
क्यों किया,किसलिए किया...इस बात से वो ज़ार-ज़ार फिर से रोई थी...