दौलत से बिकना होता तो ना जाने कितनी बार बिक चुके होते...ईमान को छोड़ दिया होता तो आज इसी
दौलत के राजसिहांसन पर बैठे होते...ज़िंदगी और हालात मौका देते रहे बार बार,दौलत और ताकत की
राहो पे बुलाने के लिए...ज़मीर अपने की आवाज़ थी इतनी तेज़ कि उस तेज़ के आगे कभी दौलत को
चुन ही नहीं पाए...वो तेज़ चेहरे पे ले आए,इसी कोशिश मे दौलत की बेकार बेनाम राहो से नाता तोड़
लिया हम ने..बिंदास जीते है कि सकून की मंहगी दौलत है आज पास...पुकारते है उस को,वो संवार
देता है हमारे सारे बिगड़े काम..