Wednesday 23 September 2020

 सिर्फ अपना स्वार्थ ना सोच,प्रेम स्वार्थ से परे इक खूबसूरत बंधन है...नाम इस बंधन को मिले ना मिले,


पर फिर भी यह प्रेम ही रहता है...किसी को टूट के चाहना और बदले मे कुछ भी ना चाहना..प्रेम नाम 


इसी का है..प्रेम तो खुद ही चल कर आता है..मन होगा जब पवित्र धारा जैसा,निर्मल होगा गंगा के जैसा..


यह खुद ही खुद से परिशुद्ध हो जाए गा..मांगने से प्रेम कहां मिलता है..दर्द किसी और को दे कर प्रेम 


वहां कब रुकता है..ढाई अक्षर कितने सरल है,निभा कर ही जाना जाए गा..स्वार्थ आ गया जब बीच मे 


तो यह प्रेम बहुत दूर हो जाए गा...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...