पुकार रहे है तुझे हर गली हर शहर मे...कहां हो तुम जरा उस शहर उस गली का पता तो दो तुम...
फिर कोई दस्तक आसमां से आई है...धरा भी कुछ भारी सी हो आई है...बरखा भी बस अब रोने को
है...शाम भी शाम से पहले ढलने को है...इंतज़ार कहता है,कही दूर दूर तक तेरे कदमों की कोई आहट
ही नहीं...इंशाअल्लाह,तेरी सलामती की भी कोई खबर नहीं..कहां हो तुम कि शमा भी रौशन होने को
है...ढूंढ रहे है तुझे हर गली,हर मोहल्ले मे..शायद वो गली इस मोहल्ले मे कही है ही नहीं...