Monday 21 September 2020

 पुकार रहे है तुझे हर गली हर शहर मे...कहां हो तुम जरा उस शहर उस गली का पता तो दो तुम...


फिर कोई दस्तक आसमां से आई है...धरा भी कुछ भारी सी हो आई है...बरखा भी बस अब रोने को 


है...शाम भी शाम से पहले ढलने को है...इंतज़ार कहता है,कही दूर दूर तक तेरे कदमों की कोई आहट 


ही नहीं...इंशाअल्लाह,तेरी सलामती की भी कोई खबर नहीं..कहां हो तुम कि शमा भी रौशन होने को 


है...ढूंढ रहे है तुझे हर गली,हर मोहल्ले मे..शायद वो गली इस मोहल्ले मे कही है ही नहीं...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...