क्या आज फिर कोई ख़ता हो गई जो फिर से रोया है...क्या आज तूने फिर से किसी का दिल दुख दिया
जो मालिक के आगे फूट-फूट सिसका है...फिर कर दी शिकायत इस ज़िंदगी से कि तूने उस को जयदा
और मुझ को कम से क्यों नवाज़ा है...अरे पगले,जो तेरे पास है,वो औरों के पास कहां है..देख आईने मे
खुद को सर से पांव तक..इसी कुदरत ने तुझ को हज़ारो नियामतों से बखूबी संवारा है..अब तुझी को ही
समझ ना आए..अब तुझी को ही कुछ दिखाई ना दे तो कुदरत कहां से गलत-धारा है..जितना है उसी के
लिए मुस्कुरा ना..यह जीवन भी तो बहती धारा है...