उठ जा ना,यह वक़्त सोने का तो नहीं...कर सिंगार अपनी ख्वाइशों का और गमों को अलविदा कहने
का....यह ज़िंदगी ना बहुत शातिर है,जितना भी बस चले इस का, यह अपने इशारों पे नचाती है...जब
कोई खुश होने लगे यह अचानक कुछ ऐसा कर देती है,घुलने लगता है दिल और अरमान खफा हो
जाते है...नसीहत देते है तुझे,अपने चेहरे की मुस्कान ना गायब करना...यह ज़िंदगी बस इसी मुस्कान
से डरती है...मासूम बेखबर रहना मगर इस ज़िंदगी के सफ़र मे मजबूती से उतर जाना...