खुशनुमा है आज की शाम...सावन का कोई बचा हुआ टुकड़ा,बरसने को तैयार है आज की शाम...यह
बचा सा बादल बरसे गा कितने जोरों से..कि इस का मकसद खुद को साबित करना है...धरा को कितना
भिगो पाए गा और यह धरा सूनी सी, क्या और कितना भीग पाए गी...शायद यह टुकड़ा खुद को आज भी
साबित नहीं कर पाए गा...धरा की कठिन परीक्षा मे शायद ही सफल हो पाए गा...