Sunday 6 September 2020

 मेरी फकीरी और तेरी अमीरी ...कितनी पास पास है..ज़िंदगी की यह राहें भरी है काँटों से,पर देख ना 


साथ मे कुछ फूल भी है...कोई दूर तक साथ हमारा दे या ना दे,पर हम खुद के साथ आखिरी दौर तक 


है..यह फकीरी भी अजीब शै है,दिल का शीशा साफ़ करती रहती है...ठोकर मिले कही से भी पर यह 


अपने शीशे पे धूल ना जमने देती है...यह फकीरी सिक्को को तब्बज़ो कहां देती है..थाली सजाती रहती 


है कुदरत इस के लिए खुद ही,तो यह अमीरी का आईना कहां देख पाती है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...