मेरी फकीरी और तेरी अमीरी ...कितनी पास पास है..ज़िंदगी की यह राहें भरी है काँटों से,पर देख ना
साथ मे कुछ फूल भी है...कोई दूर तक साथ हमारा दे या ना दे,पर हम खुद के साथ आखिरी दौर तक
है..यह फकीरी भी अजीब शै है,दिल का शीशा साफ़ करती रहती है...ठोकर मिले कही से भी पर यह
अपने शीशे पे धूल ना जमने देती है...यह फकीरी सिक्को को तब्बज़ो कहां देती है..थाली सजाती रहती
है कुदरत इस के लिए खुद ही,तो यह अमीरी का आईना कहां देख पाती है...