Thursday 24 September 2020

 खुद ही मे बेशक,इक किताब है हम..पन्ने जितने है इस मे,उस से भी जयदा मशहूर है हम..किताब के 


आखिरी पन्ने तक कोई पहुंच ही ना पाए गा..जब तल्क़ देखो गे पहला पन्ना,पन्नो का हिसाब और बढ़ जाए 


गा...कही हम खड़े है किसी पेड़ की छांव मे तो कभी झुलस रहे है तपती गर्मी की उदास शाम मे...ना 


बचा तपती झुलसती आपदाओं से हमें...शायद किताब मे वो निखार आ ही ना पाए गा..कौन पढ़ता है 


किताबें ऐसी,जो सबक खास ना देती हो...ना उम्मीद कर आखिरी पन्ने तक जाने की,यह किताब पढ़ते 


पढ़ते तेरी ज़िंदगी तुझे तेरी अपनी ज़िंदगी की शाम तक ले आए गी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...