इस ज़माने मे राजा हरीश चंद्र कौन होता है...झूठ पे खिलते है मुहब्बत के महल और प्यार इसी पे ही
आंका जाता है...झूठ जब तक सीमा मे चले,अच्छे के लिए ही चले तो वो झूठ सच से जयदा बेहतर होता
है..पर हर नन्ही नन्ही बात पे झूठ का सहारा लेना..इंसान को दूजे की नज़रो मे गिरा जाता है..वो बेशक
खुद को बहुत शातिर समझे पर दूजा सब समझ कर भी,उस से कुछ ना कहता है..बहुत कुछ है गर
छुपाने को तो बहुत कुछ भी होता है बताने को...प्रेम को रंग सच्चाई के रंग मे,यह प्रेम बहुत खुद्दार हुआ
करता है...