Saturday 26 September 2020

 इस ज़माने मे राजा हरीश चंद्र कौन होता है...झूठ पे खिलते है मुहब्बत के महल और प्यार इसी पे ही 


आंका जाता है...झूठ जब तक सीमा मे चले,अच्छे के लिए ही चले तो वो झूठ सच से जयदा बेहतर होता 


है..पर हर नन्ही नन्ही बात पे झूठ का सहारा लेना..इंसान को दूजे की नज़रो मे गिरा जाता है..वो बेशक 


खुद को बहुत शातिर समझे पर दूजा सब समझ कर भी,उस से कुछ ना कहता है..बहुत कुछ है गर 


छुपाने को तो बहुत कुछ भी होता है बताने को...प्रेम को रंग सच्चाई के रंग मे,यह प्रेम बहुत खुद्दार हुआ 


करता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...