वो बेहद खूबसूरत थी..
वो अपने मन की मालिक थी..
वो सब की दुलारी भी थी...
बहुत अमीर भी थी...
वो बेहद बदसूरत था...
रंग बेहद काला भी था...
बहुत ही गरूर वाला था...
गुस्सा नाक पे ही रखा था...
अमीर शायद उस से भी जयदा था...
बोलने का कोई शऊर ना था...
पर यह कैसा गज़ब था...
प्रेम का नशा दोनों पे हावी था...
एक पूरब तो दूजा पश्चिम था...
बेमेल जोड़ी का यह कौन सा करिश्मा था...
फिर भी संग साथ जीने का वादा था..
जन्मो प्रेम का गहरा वादा था...
यक़ीनन..प्रेम हो सच्चा तो रूप-रंग कहां देखा जाता है..
प्रेम ढला रिश्ते मे,यह कैसा संजोग था..
यह प्रेम था...जो आसमान से भी ऊपर पाकीजगी पे सजा था...