Saturday 26 September 2020

 वो बेहद खूबसूरत थी..

वो  अपने मन की मालिक थी..

वो सब की दुलारी भी थी...

बहुत अमीर भी थी...

वो बेहद बदसूरत था...

रंग बेहद काला भी था...

बहुत ही गरूर वाला था...

गुस्सा नाक पे ही रखा था...

अमीर शायद उस से भी जयदा था...

बोलने का कोई शऊर ना था...

पर यह कैसा गज़ब था...

प्रेम का नशा दोनों पे हावी था...

एक पूरब तो दूजा पश्चिम था...

बेमेल जोड़ी का यह कौन सा करिश्मा था...

फिर भी संग साथ जीने का वादा था..

जन्मो प्रेम का गहरा वादा था...

यक़ीनन..प्रेम हो सच्चा तो रूप-रंग कहां देखा जाता है..

प्रेम ढला रिश्ते मे,यह कैसा संजोग था..

यह प्रेम था...जो आसमान से भी ऊपर पाकीजगी पे सजा था...


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...