गुनगुना संग मेरे..ज़िंदगी ने आज फिर ख़ुशी से पुकारा है..साँसों की रफ़्तार ने फिर से आज गगन
और आकाश को पुकारा है...मंदिर की घंटिया बजने लगी..यू लगा जैसे कुदरत हम को कोई वरदान
देने लगी...करधनी क्यों आज कमर पे बेइंतिहा सजने लगी....माथे का झूमर झिलमिला उठा...होठों पे
कोई प्रेम गीत खुद से ही गाने लगा...पलकें झुकी और यह आंखे हंसी..वाह,कैसा संजोग है...बिन पिए
मदहोश होने लगे,ज़िंदगी तू भी तो कमाल है...है तू बहुत खूबसूरत,मशआलाहा ..कमाल पे कमाल है...