Thursday 3 September 2020

 राज़ की वो एक खूबसूरत शाम थी...तन्हाई थी मगर फिर भी मुस्कुराई शाम थी...बेवजह तकरार ना 


हो इस ख्याल से वो शाम नींद के खुमार मे थी...सितारे झिलमिला उठे पर क्यों वो शाम रात पे जाने 


को तैयार ना थी..रात से डरने लगी थी वो,फ़ूलों के मुरझाने से खौफ खाने लगी थी वो...बहुत प्यार था 


उस को फ़ूलों से,शायद इसीलिए रात को रोकना चाहती थी वो...इस ख्याल से रात को अपना लिए...


कल की सुबह फ़ूलों को संग फिर लाए गी..यक़ीनन, राज़ की यह खूबसूरत शाम तन्हाई मे फिर से 


मुस्कुराए गी....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...