Thursday 3 September 2020

 तड़प के जो मदहोश हो जाए वो शब्द हू मैं...जो भर दे जादू ज़िंदगी मे वो हल्की सी खलिश हू मैं...


जो रात-रात भर सोने ही ना दे ऐसी हुस्ने-मल्लिका हू मैं..जो दिन को बदल दे शाम के धुंधलके मे, 


खुदा की ऐसी सौगात हू मैं...अपने पे जो आ जाऊ तो कहर का इक नाम हू मैं...बदलना सीखा है 


मगर तोहमतें कोई लगा दे ऐसी,तो वापिस उस राह लौटना मंजूर ही नहीं...हुस्ने-मल्लिका कहते है 


लोग मगर गरूर का कोई सामान मेरे पास नहीं..चंचल छाया हू परवरदिगार की,जिस राह से निकलू 


खुशियों छोड़ दू वही...तभी तो  मिला कुदरत से नाम हुस्ने-मल्लिका मुझे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...