Wednesday 2 September 2020

 सावन चला गया और हम तुझी को पुकारते रहे...बादल बरसे रात-रात भर मगर हम तो रात भर जागते 


ही रहे...बिजली कड़की इतनी जोरों से,हम खुद से सम्भल ही ना पाए...बेबसी मे रोए फिर भी नहीं,बस 


शीशे के टुकड़े खिड़की से फिर नज़र आए...तागीद सावन से फिर भी की,आना हर साल दुबारा तुम..


हम बेशक जागे तो जागे पर सावन के यह नज़ारे हो सहज औरो के लिए...चुनरी को कोरा रख दिया 


यह जान के..रंग सावन के जब बिखरे चारों तरफ तो कोई तो चुनरी कोरी होनी चाहिए .....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...