Saturday 19 September 2020

 वादियों मे गूंज उठा मीठा सा शोर प्रेम का...वो बोले,यह क्या हुआ...प्रेम का शोर क्यों खिल गया...प्रेम 


तो साधना है,तपस्या है और इबादत का दूजा नाम है...फिर यह शोर कैसा जो मेरे कानों मे गूंज गया...


मेरे सनम,मेरे भोले सनम...प्रेम को तुम ने अभी कहां जाना..प्रेम का स्वरूप तुम ने अभी कहां पहचाना...


यह शोर नहीं,यह दो दिलों की आवाज़ है..जो सुनती है तुम को इक शोर के रूप मे..और मुझे,मंदिर की 


घंटियों की आवाज़ लगती है..प्रेम मे अभी बहुत कच्चे हो..जो शोर मंदिर की शोभा लगे,जो सिर्फ अपने ही 


दिल को एहसास दे..वही तो परिशुद्ध प्रेम है..देह का मिलन सिर्फ इस का अधूरा रूप है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...