सोने सा उज्जवल मन मिला और चांदी सी शुद्ध देह मिली...दिल को सकून की इक धड़कन मिली..
भोर की पहली किरण जब मुस्कुराते हुए हम-तुम से मिली..क्या खूब यह ज़िंदगी मिली...कोई शिकवा
किसी से भी नहीं..खुद मे मस्त यह ज़िंदगी उस की दया से खिलखिलाती रही..कभी तो उस पे यकीन
कर..कभी तो अपनी मेहनत को जनून का हिसाब दे..किसी और के हिस्से का क्या करना...जो होगा
खुद का वो खुद ही चल कर आ जाता है..यू बात-बात पे रोता है तो जो मिला है वो भी चला जाता है...