सब कुछ खो कर भी ख़ुशी-ख़ुशी जीना...यारा,यह भी तो अंदाज़े-खास है...बेवजह खिलखिला कर हंस
देना..वल्लाह,कैसा सा आफ़ताब है...देखा आज किसी को ज़िंदगी से रुखसत होते हुए,रोना तो जैसे
इन आँखों ने बंद सा कर दिया...सकून मिला इतना कि जैसे वो कितना आज़ाद हो गया...ना तड़प से
कोई वास्ता ना झंझटो का कोई रास्ता...कितने हाथ उठ रहे उस को विदा देने के लिए..मुस्कुरा दिए
क्या तब भी इतने हाथ थे उस को कुछ ख़ुशी देने के लिए...यारा..यारा..सुन मेरे यारा...इसलिए तो इस
बेवफा ज़िंदगी से प्यार इतना कर रहे..कौन जाने कितने होंगे जो सिर्फ एक आंसू भी शायद बहा दे
हमारे लिए...रुखसत तो वो हुआ मगर हम अकेले मे ज़िंदगी पे मुस्कुरा दिए...