क्या हुआ जो दौलत के ख़ज़ाने ख़त्म हो गए..क्या हुआ जो ऐशो-आराम के साधन ग़ुम हो गए...क्या हुआ
जो ज़माने ने हम पे दाग़ लगा दिए...क्या हुआ जो सब हमारे खिलाफ़ हो गए...जब ऊपर वाले ने साथ
दे दिया तो ज़माने की क्या बिसात है...उस ने बेदाग़ साबित कर दिया तो ज़माने से क्या डरना...यह भी
कोई रोने की बात है...एक दरवाजा बंद होता है तो वो दूजा पहले ही खोल देता है...जी ले जितना जैसा
मन है तेरा,यह ज़माना तो सीता और राम को भी कहां बेदाग़ रखता है...