यह स्याही भी क्या अजीब शै है ना...रंग हो जितने, लिखती है उन रंगो से कही जयदा रंग..कभी ख़ुशी
का रंग,कभी मुहब्बत के रंग...कभी अपने पे आ जाए तो समाज की धज़्ज़िया उड़ा देती है यह स्याही
और यह रंग..रंग हो लाल तो मुहब्बत को लिख देती है..सफ़ेद रंग मे जो ढले तो शांति की गुहार लगाती
है..काला रंग इस को भाता नहीं मगर फिर भी शोक की घड़ी मे खुद से रो देती है वो...इंद्रधनुष की तरह
बिखरना चाहती है यह स्याही और यह रंग...फैला दे चारो तरफ यह सारे रंग और कलम लिख दे प्यार
के तमाम अनूठे रंग...