कल तल्क़ जो उठा रहा था नाज़ हमारे...हमारी हर बात को दे रहा था इज़्ज़त और बता रहा था शहज़ादी
हमे...जो हम कहे मान लेता था वो...जिस जगह रख दे कदम,वो जगह सज़दा करता था वो...कितने ही
खामो-ख़याली मे इतरा रहे थे हम..कितने ही खुश थे,खुद को भी बता नहीं पा रहे थे हम...अचानक एक
दिन ''तुम हो छोटी जात के''..कह कर हम से किनारा कर लिया..जात-पात का बंधन,प्यार मे कब कहां
होता है...रुखसत हुए उस के प्यार से...पर यारा,ज़िंदगी कब रुकने का नाम है..आज जिस ओहदे पे
खड़े है हम,वहां ऊँची जाती वालो के साथ हमारा खासा नाम है..सज़दा करते है वो हमारा ,जिन का
समाज मे अपना एक रुतबा और ऊँची शान-बान है...