वो बड़े ही गरूर से अपनी ज़िंदगी को जीते रहे...खुद पे गुमान इतना कि हर किसी को खुद से छोटा
समझते रहे..गरूर क्या इस देह का..गरूर क्या दौलत का...गरूर क्या अपने महकते आशियाने का...
कैसे बताए,कैसे समझाए...यह सब इक दिन राख़ हो जाना है..साथ कुछ भी नहीं जाना है..जान अपनी
तुम पे निछावर करते रहे पर तुम इन सब गरूर से कभी ऊपर ना उठ सके...और हम बहुत तहजीब से
उन की ज़िंदगी से दूर बहुत दूर हो गए...