Tuesday 1 September 2020

 वो बड़े ही गरूर से अपनी ज़िंदगी को जीते रहे...खुद पे गुमान इतना कि हर किसी को खुद से छोटा 


समझते रहे..गरूर क्या इस देह का..गरूर क्या दौलत का...गरूर क्या अपने महकते आशियाने का...


कैसे बताए,कैसे समझाए...यह सब इक दिन राख़ हो जाना है..साथ कुछ भी नहीं जाना है..जान अपनी 


तुम पे निछावर करते रहे पर तुम इन सब गरूर से कभी ऊपर ना उठ सके...और हम बहुत तहजीब से 


उन की ज़िंदगी से दूर बहुत दूर हो गए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...