ना वो खूबसूरत थी,ना वो बदसूरत थी...वो ना इस लोक की थी,ना वो दूजे लोक की थी..ना बाला थी,ना
अल्हड़ मस्त उम्र की दहलीज़ पे थी...सर से पांव तक,उस को जिस ने भी देखा..वो सब की समझ से
परे बहुत परे थी...वो मशाल लिए हाथ मे,क्या दुर्गा का कोई रूप थी...गहरा तेज़ चेहरे पे लिए,किसी के
लिए वो माँ स्वरूप थी...ना जन्मी किसी की कोख से,ना पली किसी के हाथों मे...मगर फिर भी वो सभी
के लिए खास थी...उम्मीदों के दीए जला कर सभी के लिए,वो दूर खड़ी सिर्फ मुस्कुरा भर रही थी...