Saturday 6 June 2020

सिर्फ किताबी चेहरा नहीं हमारा..हम तो खुद ही मे एक किताब है..कोशिश कीजिए हम को पढ़ने की,

बीत जाए गी उम्र सारी पर फिर भी पूरा हम को ना पढ़ पाए गे..कुछ पन्ने है इतने जयदा बिखरे हुए..

कुछ है बेहिसाब दर्द से भरे हुए...बहुत है ऐसे जो कोरे ही रह गए...कुछ है ऐसे जो अश्क की चादर

मे है आज तक भीगे हुए...कही पे हम रुके हुए है,बंदिशों मे भरे हुए...पढ़ने के लिए,आप को जन्म ना

जाने कितने लेने होंगे...हम तो छोड़ जाए गे किताब अपनी,पढ़ने के लिए पीछे आप रह जाए गे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...