Monday 8 June 2020

यह फ़िज़ाए यह हवाएं आवाज़ दे रही है तुझे...तेरे कदमों की आहट सुनने के लिए बेताब हो रही है

बहुत...यह नदिया यह झरने,बहुत रफ़्तार से समंदर मे मिलने को है तैयार...चट्टानों को चीर कर फिर

यह नादान पत्थर गिर रहे है धरा के कदमों मे आज...मौसम क्यों दिल्लगी कर रहा है इंसानो के साथ..

कभी बरसता है इतना कि थमता नहीं तो कभी खामोश है इतना कि आवाज़ तक करता नहीं...गज़ब

तो यह आसमां का जादू भी है..कभी दिखला देता है चाँद तो कभी इस को नज़र ना लगे,खुद मे छुपा

लेता है खास..लगता है यह सारे जादू की नगरी से आए है तभी तो हम इन सभी को समझ ना पाए है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...