यह फ़िज़ाए यह हवाएं आवाज़ दे रही है तुझे...तेरे कदमों की आहट सुनने के लिए बेताब हो रही है
बहुत...यह नदिया यह झरने,बहुत रफ़्तार से समंदर मे मिलने को है तैयार...चट्टानों को चीर कर फिर
यह नादान पत्थर गिर रहे है धरा के कदमों मे आज...मौसम क्यों दिल्लगी कर रहा है इंसानो के साथ..
कभी बरसता है इतना कि थमता नहीं तो कभी खामोश है इतना कि आवाज़ तक करता नहीं...गज़ब
तो यह आसमां का जादू भी है..कभी दिखला देता है चाँद तो कभी इस को नज़र ना लगे,खुद मे छुपा
लेता है खास..लगता है यह सारे जादू की नगरी से आए है तभी तो हम इन सभी को समझ ना पाए है..
बहुत...यह नदिया यह झरने,बहुत रफ़्तार से समंदर मे मिलने को है तैयार...चट्टानों को चीर कर फिर
यह नादान पत्थर गिर रहे है धरा के कदमों मे आज...मौसम क्यों दिल्लगी कर रहा है इंसानो के साथ..
कभी बरसता है इतना कि थमता नहीं तो कभी खामोश है इतना कि आवाज़ तक करता नहीं...गज़ब
तो यह आसमां का जादू भी है..कभी दिखला देता है चाँद तो कभी इस को नज़र ना लगे,खुद मे छुपा
लेता है खास..लगता है यह सारे जादू की नगरी से आए है तभी तो हम इन सभी को समझ ना पाए है..