यह अल्फ़ाज़..इन की दास्तां भी गुमशुदा जैसी है..कभी होता है ऐसे,कहना चाहते है बहुत कुछ,मगर
यह अल्फ़ाज़ अंदर ही रुक जाते है...और कभी,यह निकलते है जब जुबां से तो समझने वाला कोई होता
नहीं....सुनते है लोग मगर इन अल्फाज़ो की कीमत समझ नहीं पाते है...कभी कोई भटका हुआ राही,
इन अल्फाज़ो को हीरा समझ अपने दिल मे उतार लेता है...फिर भी इन अल्फाज़ो की दास्तां गुमशुदा
ही है..बिना कहे बिना बोले,जो इन अल्फाज़ो को समझ जाए,ऐसा फरिश्ता इस दुनियां मे कहां होता है..
यह अल्फ़ाज़ अंदर ही रुक जाते है...और कभी,यह निकलते है जब जुबां से तो समझने वाला कोई होता
नहीं....सुनते है लोग मगर इन अल्फाज़ो की कीमत समझ नहीं पाते है...कभी कोई भटका हुआ राही,
इन अल्फाज़ो को हीरा समझ अपने दिल मे उतार लेता है...फिर भी इन अल्फाज़ो की दास्तां गुमशुदा
ही है..बिना कहे बिना बोले,जो इन अल्फाज़ो को समझ जाए,ऐसा फरिश्ता इस दुनियां मे कहां होता है..