''सरगोशियां'' बयां करती रहे गी..राधाकृष्ण के प्रेम का अस्तित्व...इसी धरा के प्रेमियों को सिखाती रहे
गी परिशुद्ध-प्रेम का स्वरूप...वो राधा ही क्या जो अपने कृष्णा को बदल ना सकी..वो कृष्णा ही क्या
जो राधा के मन की इच्छा ना जान सका...तन बेशक दो रहे मगर मन की सोच तो एकतार है..एक है
घायल दूजे के लिए तो दूजा उसी के लिए पागल और बेक़रार है..साँसों की मोहलत भी एक जैसी है..एक
को जाना है है तो दूजे को भी उसी संग चले जाना है...अनंत-काल की यात्रा का साथ दोनों ने साथ-साथ
जो निभाना है...
गी परिशुद्ध-प्रेम का स्वरूप...वो राधा ही क्या जो अपने कृष्णा को बदल ना सकी..वो कृष्णा ही क्या
जो राधा के मन की इच्छा ना जान सका...तन बेशक दो रहे मगर मन की सोच तो एकतार है..एक है
घायल दूजे के लिए तो दूजा उसी के लिए पागल और बेक़रार है..साँसों की मोहलत भी एक जैसी है..एक
को जाना है है तो दूजे को भी उसी संग चले जाना है...अनंत-काल की यात्रा का साथ दोनों ने साथ-साथ
जो निभाना है...