यह गहरे काले पानी से भरे बादल....पूछते है तुम से,रज़ा क्या है तुम्हारी...कही बरस रहे हो बेतहाशा तो
कही नाराज़गी से भरे खाली-खाली हो...कही बरपा रहे हो कहर तो कही आसमां सूखा है...यह ज़िद्द है
तुम्हारी या इंसा को सताने का गज़ब बहाना है...ज़िद्द छोड़ दे अपनी,संभल जा जरा..बरस जरूर मगर
सब को अपने रुतबे का एहसास दिला..किसी को इतना भी दुःख ना दे कि वो तेरे कहर से थक जाए...
ना रख किसी को इतना तन्हा कि तेरी एक बून्द को ही तरस जाए...
कही नाराज़गी से भरे खाली-खाली हो...कही बरपा रहे हो कहर तो कही आसमां सूखा है...यह ज़िद्द है
तुम्हारी या इंसा को सताने का गज़ब बहाना है...ज़िद्द छोड़ दे अपनी,संभल जा जरा..बरस जरूर मगर
सब को अपने रुतबे का एहसास दिला..किसी को इतना भी दुःख ना दे कि वो तेरे कहर से थक जाए...
ना रख किसी को इतना तन्हा कि तेरी एक बून्द को ही तरस जाए...