Tuesday 16 June 2020

यह नींद क्यों इन आँखों से जुदा हो गई है..क्यों यह रात खुद हम से ही दूर हो गई है..खवाब तेरे रोज़

देखे,यह हसरत बस हसरत ही रह गई है..कि इन आँखों ने तुझे देखे बेग़ैर सोने की मन्नत छोड़ दी है...

सितारे गिने कैसे कि बादलों की ओट मे इन की फितरत बदल गई है...थक गए है तेरी इंतज़ार मे ऐ

चाँद,पर तू है तुझे अपनी चांदनी की खबर तक नहीं है..अब नींद आए तो आए कैसे कि ज़िंदगी बिन

बरसात जैसी हो गई है...मुलाकात होगी तुम से तो बताए गे कि नींद के बिना इन आँखों की तासीर क्या

हो गई है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...