यह नींद क्यों इन आँखों से जुदा हो गई है..क्यों यह रात खुद हम से ही दूर हो गई है..खवाब तेरे रोज़
देखे,यह हसरत बस हसरत ही रह गई है..कि इन आँखों ने तुझे देखे बेग़ैर सोने की मन्नत छोड़ दी है...
सितारे गिने कैसे कि बादलों की ओट मे इन की फितरत बदल गई है...थक गए है तेरी इंतज़ार मे ऐ
चाँद,पर तू है तुझे अपनी चांदनी की खबर तक नहीं है..अब नींद आए तो आए कैसे कि ज़िंदगी बिन
बरसात जैसी हो गई है...मुलाकात होगी तुम से तो बताए गे कि नींद के बिना इन आँखों की तासीर क्या
हो गई है....
देखे,यह हसरत बस हसरत ही रह गई है..कि इन आँखों ने तुझे देखे बेग़ैर सोने की मन्नत छोड़ दी है...
सितारे गिने कैसे कि बादलों की ओट मे इन की फितरत बदल गई है...थक गए है तेरी इंतज़ार मे ऐ
चाँद,पर तू है तुझे अपनी चांदनी की खबर तक नहीं है..अब नींद आए तो आए कैसे कि ज़िंदगी बिन
बरसात जैसी हो गई है...मुलाकात होगी तुम से तो बताए गे कि नींद के बिना इन आँखों की तासीर क्या
हो गई है....