याद कर के तुझे क्यों सुर्ख हो जाते है ...देख खुदी को खुद ही शर्मा जाते है ...यह निगाहें जब-जब झुकती
है तो तेरा चेहरा सामने आ जाता है...तेरा बेबाक बोलना बहुत याद आता है...जमीं का चाँद हो या उस
आसमां का चाँद,यह तय करना नामुमकिन हो जाता है...कितना भीगे इस तूफानी बरसात मे कि भीग
कर भी कोई तूफानी आग अंदर सुलगती है...यह साँझ क्यों रोज़ इस बरसात को साथ लाती है...तेरे
कदमो को मेरे पास आने से क्यों रोक लेती है...गहरा जाए रात इस से पहले तू चले आना..बहुत
इंतज़ार हम ने किया,अब एक वादा तू भी निभा देना....
है तो तेरा चेहरा सामने आ जाता है...तेरा बेबाक बोलना बहुत याद आता है...जमीं का चाँद हो या उस
आसमां का चाँद,यह तय करना नामुमकिन हो जाता है...कितना भीगे इस तूफानी बरसात मे कि भीग
कर भी कोई तूफानी आग अंदर सुलगती है...यह साँझ क्यों रोज़ इस बरसात को साथ लाती है...तेरे
कदमो को मेरे पास आने से क्यों रोक लेती है...गहरा जाए रात इस से पहले तू चले आना..बहुत
इंतज़ार हम ने किया,अब एक वादा तू भी निभा देना....