Thursday 11 June 2020

याद कर के तुझे क्यों सुर्ख हो जाते है ...देख खुदी को खुद ही शर्मा जाते है ...यह निगाहें जब-जब झुकती

 है तो तेरा चेहरा सामने आ जाता है...तेरा बेबाक बोलना बहुत याद आता है...जमीं का चाँद हो या उस

आसमां का चाँद,यह तय करना नामुमकिन हो जाता है...कितना भीगे इस तूफानी बरसात मे कि भीग

कर भी कोई तूफानी आग अंदर सुलगती है...यह साँझ क्यों रोज़ इस बरसात को साथ लाती है...तेरे

कदमो को मेरे पास आने से क्यों रोक लेती है...गहरा जाए रात इस से पहले तू चले आना..बहुत

इंतज़ार हम ने किया,अब एक वादा तू भी निभा देना....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...