घुल रहा है रोज़ हवाओ मे यह कहर यह ज़हर...दहशत से खौफ से जीना छोड़ रहे है लोग...क्यों और
किसलिए डर रहे है लोग...कर्मो का लेखा-जोखा अभी तो सामने आए गा..जो किया है उम्र भर या जितना
किया है अभी तक,अच्छा या बुरा...उस का नतीजा कभी तो सामने आए गा...कौन कहता है हम बुरे है..
खुद को साफ़-पाक तो हर कोई कहता है..अब हिसाब करने की बारी उस परवरदिगार की है...जितना
भी वक़्त मिल रहा है अब जीने के लिए,खुल कर जी लीजिए...कल क्या पता कौन जुदा हो जाए किस से...
मुस्कुरा दीजिए ना अब,हिम्मत ना छोड़िए...बस आज मे ही जी ले...
किसलिए डर रहे है लोग...कर्मो का लेखा-जोखा अभी तो सामने आए गा..जो किया है उम्र भर या जितना
किया है अभी तक,अच्छा या बुरा...उस का नतीजा कभी तो सामने आए गा...कौन कहता है हम बुरे है..
खुद को साफ़-पाक तो हर कोई कहता है..अब हिसाब करने की बारी उस परवरदिगार की है...जितना
भी वक़्त मिल रहा है अब जीने के लिए,खुल कर जी लीजिए...कल क्या पता कौन जुदा हो जाए किस से...
मुस्कुरा दीजिए ना अब,हिम्मत ना छोड़िए...बस आज मे ही जी ले...