कभी हो बर्फ की शिला जैसे तो कभी बारूद का गोला हो...कभी उठाते हो नाज़ हमारे तो कभी अचानक
धरा पे हम को पटक देते हो...कभी बोलते रहना है इतना तो कभी दिनों चुप्पी साधे रखते हो...पल मे
तोला तो बाबा रे पल मे माशा हो तुम ..तेरे इस रवैए से कभी डर जाते थे हम,पर अब सकून से रहते है...
जब हम बढ़ाए गे दूरियां तो चारो खाने चित्त हो जाओ गे तुम...इम्तिहान ना ले हमारा इतना,बहुत पछताओ
गे तुम...रात हो रही है गहरी,इस से जयदा कुछ और नहीं कहे गे अब....
धरा पे हम को पटक देते हो...कभी बोलते रहना है इतना तो कभी दिनों चुप्पी साधे रखते हो...पल मे
तोला तो बाबा रे पल मे माशा हो तुम ..तेरे इस रवैए से कभी डर जाते थे हम,पर अब सकून से रहते है...
जब हम बढ़ाए गे दूरियां तो चारो खाने चित्त हो जाओ गे तुम...इम्तिहान ना ले हमारा इतना,बहुत पछताओ
गे तुम...रात हो रही है गहरी,इस से जयदा कुछ और नहीं कहे गे अब....