शोहरत की बुलंदी को छूना है तुझे तो खुद को बदलना होगा..ज़माना परखता है हर मोड़ पर सो लहज़ा
बोलने का बदलना होगा..सिर्फ इतना कहा तो ज़नाब बिफर गए,प्रवचन ना बोलिए..यह प्रवचन खुद के
पास ही रख लीजिए...हे अल्लाह,जो हम से ही उलझ ले वो ज़माने से कैसे निपटे गा..हर बात पे खफा हो
जाए वो बुलंदी को कैसे छू पाए गा..पर कसम तो हम ने भी इसी बुलंदी की खाई है...तू ना सुधरे तो क्या..
यह हमारी दुआ से खुद तेरे पास चल कर आए गी...यह जो तुझे लगते है प्रवचन,वही सुनने एक दिन तू
खुद की मर्ज़ी से पास हमारे आए गा...
बोलने का बदलना होगा..सिर्फ इतना कहा तो ज़नाब बिफर गए,प्रवचन ना बोलिए..यह प्रवचन खुद के
पास ही रख लीजिए...हे अल्लाह,जो हम से ही उलझ ले वो ज़माने से कैसे निपटे गा..हर बात पे खफा हो
जाए वो बुलंदी को कैसे छू पाए गा..पर कसम तो हम ने भी इसी बुलंदी की खाई है...तू ना सुधरे तो क्या..
यह हमारी दुआ से खुद तेरे पास चल कर आए गी...यह जो तुझे लगते है प्रवचन,वही सुनने एक दिन तू
खुद की मर्ज़ी से पास हमारे आए गा...