Monday 8 June 2020

एक एक लम्हा और दिन का शाम मे ढलना...शाम की बेला मे फिर शाम का इंतज़ार करना..यह शाम

कभी ख़ुशी तो कभी उदासी भी देती है...कभी आती है संग बादलों के घिरे तो कभी तेज़ हवा संग गम

उड़ा लेती है...कभी खुद ही यह शाम अचानक से खुदी को रात मे तब्दील कर लेती है...भर जाते है

सितारे आसमां मे और रात चुपके से गहरा जाती है...शाम तू भी लाजवाब है..जब जी चाहे दिन को

बदल देती है अपने रंग मे...हम इंतज़ार करते है शिद्दत से तेरा और तू है कि जी चाहे तो खुद को रंग

दे देती है गहरी रात मे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...