मौत का खेल दिख रहा है चारो और...मन उदास हो गया यह सोच कर,इस माटी की कीमत माटी से
भी कम है...बिखरे पड़े है बेजान जिस्म धरा पे इधर-उधर...क्या पता कल नाम हमारा भी शामिल हो
जाए इन बेज़ानों मे...बन जाए माटी, नाम लिखा जाए सिर्फ अखबारों के कागज़ो मे...डर मौत का नहीं,
डर तो इस लापरवाही का है...ढूंढे गे कैसे हमारे अपने,हज़ारो माटी के ढेर मे हम को...बस कर ईश्वर,
इस कहर को रोक दे...मौत देनी है तो दे, मगर माटी की इतनी तौहीन को रोक दे...
भी कम है...बिखरे पड़े है बेजान जिस्म धरा पे इधर-उधर...क्या पता कल नाम हमारा भी शामिल हो
जाए इन बेज़ानों मे...बन जाए माटी, नाम लिखा जाए सिर्फ अखबारों के कागज़ो मे...डर मौत का नहीं,
डर तो इस लापरवाही का है...ढूंढे गे कैसे हमारे अपने,हज़ारो माटी के ढेर मे हम को...बस कर ईश्वर,
इस कहर को रोक दे...मौत देनी है तो दे, मगर माटी की इतनी तौहीन को रोक दे...