यह शाम आज इतनी लम्बी क्यों है...इस के लम्हे तो जैसे लगता है,थम गए है...और थमे भी ऐसे है
कि जैसे घड़ी के तार रुक गए है...देखते है बार-बार,मगर यह तार तो घड़ी के भी रुक ही गए है...
क्या करे इस शाम का,जिस का इरादा हम को पता नहीं...कैसे करे इन लम्हो को आगे कि जोर इन
पे चलता नहीं...गुजारिश करे या फिर सिफारिश..शाम ढल जरा जल्दी...तेरे यह लम्हे अब गुजरते नहीं..
सरक-सरक ना चल,तेरी अहमियत जानते है हम..पर यू रुक कर अपनी अहमियत को कम ना कर..
कि जैसे घड़ी के तार रुक गए है...देखते है बार-बार,मगर यह तार तो घड़ी के भी रुक ही गए है...
क्या करे इस शाम का,जिस का इरादा हम को पता नहीं...कैसे करे इन लम्हो को आगे कि जोर इन
पे चलता नहीं...गुजारिश करे या फिर सिफारिश..शाम ढल जरा जल्दी...तेरे यह लम्हे अब गुजरते नहीं..
सरक-सरक ना चल,तेरी अहमियत जानते है हम..पर यू रुक कर अपनी अहमियत को कम ना कर..