Friday 19 June 2020

क्यों रुक गए बीच राह चलते-चलते...यह काफिला किसी मंज़िल तक पहुंचने का पैगाम ही तो था..

हसरतों का दामन और मज़बूरी के तहत,जो हार गया वो शहजादा तो कतई भी नहीं...या तो पूरे फ़कीर

बन जाते या आसमां को छू लेने की हसरत रखते...बीच राह थक के टूट जाना,इस की परिभाषा हम

क्यों लिखते...फ़कीर भी हम और आसमां के सितारे भी हम,पर शहजादे बनने का कोई ख़्वाब देखा

ही नहीं..मुकम्मल सफर करने के लिए,हिम्मत की परिभाषा बताना बहुत जरुरी है...जब अंतरात्मा हर

हालात मे जीना स्वीकार कर ले,हिम्मत की परिभाषा इसी को कहते है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...