क्यों रुक गए बीच राह चलते-चलते...यह काफिला किसी मंज़िल तक पहुंचने का पैगाम ही तो था..
हसरतों का दामन और मज़बूरी के तहत,जो हार गया वो शहजादा तो कतई भी नहीं...या तो पूरे फ़कीर
बन जाते या आसमां को छू लेने की हसरत रखते...बीच राह थक के टूट जाना,इस की परिभाषा हम
क्यों लिखते...फ़कीर भी हम और आसमां के सितारे भी हम,पर शहजादे बनने का कोई ख़्वाब देखा
ही नहीं..मुकम्मल सफर करने के लिए,हिम्मत की परिभाषा बताना बहुत जरुरी है...जब अंतरात्मा हर
हालात मे जीना स्वीकार कर ले,हिम्मत की परिभाषा इसी को कहते है....
हसरतों का दामन और मज़बूरी के तहत,जो हार गया वो शहजादा तो कतई भी नहीं...या तो पूरे फ़कीर
बन जाते या आसमां को छू लेने की हसरत रखते...बीच राह थक के टूट जाना,इस की परिभाषा हम
क्यों लिखते...फ़कीर भी हम और आसमां के सितारे भी हम,पर शहजादे बनने का कोई ख़्वाब देखा
ही नहीं..मुकम्मल सफर करने के लिए,हिम्मत की परिभाषा बताना बहुत जरुरी है...जब अंतरात्मा हर
हालात मे जीना स्वीकार कर ले,हिम्मत की परिभाषा इसी को कहते है....