Friday 26 June 2020

यह कजरा इन आँखों से क्यों बिखर गया..यह गज़रा इन गेसुओं मे क्यों उलझ गया...चूड़ियों के शोर मे

क्यों सजना ने कलाइयों को मरोड़ दिया...आज यह ख़ामोशी क्यों जुबां बन गई...शोर सुन कर भी यह

अंखिया गहरी नींद मे सो गई...करधनी कमर के बांध से क्यों खुल गई...अंगड़ाई लेते-लेते इस बदन से

जान जैसे निख़र-निख़र गई...पूछ ना हालत इस दिल की आज,इस की महक से चांदनी तक बहक गई...

उड़ रहे है क्यों आसमां मे आज, मुहब्बत के ख़ज़ानों से झोली से हमारी भर-भर गई...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...