Sunday 21 June 2020

गुजर रहे है तेरे ही शहर की सरहदों से,अपनी खुशबू के ढ़ेरों को बिखेरते हुए...जहाँ-जहाँ रख रहे है

अपने यह कदम,उन्हीं कदमो के तहत याद भी कर रहे है तुम्हे..देखना यह बरसात रुके गी आज..और

खुशबू हमारी बिखरे गी आज...मुनासिब हो इस खुशबू को समेट लेना रूह मे अपनी..रोज़-रोज़ तेरे ही

शहर की सरहदों से नहीं गुजरे गे हम...ख़ुशी से महक रहे है आज कि तेरे ही शहर की माटी मे अपनी

एक पहचान छोड़ के अब जा रहे है हम...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...