कही कोई आप जैसा ना था...ना धरती पे ना आकाश की बुलंदी पे...कुदरत ने दी सब मे कमी,सभी
आधे-अधूरे थे...कोई दौलत के गरूर मे था डूबा हुआ तो कोई अपने रुतबे से अभिमान से था भरा हुआ..
किसी के लिए महल और शानोशौकत ज़िंदगी की पहल थी..तो कोई हर रूप-सुंदरी का तलबगार था...
शीशे का दिल ना देखा कोई,यक़ीनन सभी पत्थर-मूरत जैसे थे...तमाशबीन इतने रहे कि मुहब्बत का
अर्थ तोहफों से लगाते रहे..माटी के इंसान सोने-चांदी के हो गए..कुदरत का इंसान देखा आप मे और
आप की ईमानदारी और वफ़ा पे कुर्बान हो गए...
आधे-अधूरे थे...कोई दौलत के गरूर मे था डूबा हुआ तो कोई अपने रुतबे से अभिमान से था भरा हुआ..
किसी के लिए महल और शानोशौकत ज़िंदगी की पहल थी..तो कोई हर रूप-सुंदरी का तलबगार था...
शीशे का दिल ना देखा कोई,यक़ीनन सभी पत्थर-मूरत जैसे थे...तमाशबीन इतने रहे कि मुहब्बत का
अर्थ तोहफों से लगाते रहे..माटी के इंसान सोने-चांदी के हो गए..कुदरत का इंसान देखा आप मे और
आप की ईमानदारी और वफ़ा पे कुर्बान हो गए...