Thursday 25 June 2020

पांव फैलाए बैठे है समंदर के इस खारे नीर मे...और सोच भी रहे है,इस की गहराई को...अक्सर इसी

को सोचा करते है..इस की गहराई को नापने की कोशिश मे,खुद अपने पांव इस के खारे नीर मे भिगो

दिया करते है...देर तक भिगोने से पांव अपने,हम को लगता है किसी दिन यह खारे से मीठा हो जाए गा..

अपने यकीन पे है यकीन इतना..जो यह मीठा ना हुआ तो क्या हुआ,इस के खारेपन को निगल जाए गे..

रह जाए गा जो नीर बाकी वो हमारे पांव के छूने से पारस तो हो ही जाए गा....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...