Tuesday, 16 June 2020

सुबह वही, दिन भी वही..पर आज क्यों दिल बेहद दर्द से भरा है... असहाय है आज इतना कि आंसू भी

ना निकल पाए है..जी चाहता है,सारे जहां को निखार दे..मदद के धागों से ज़िंदगियां संवार दे..एक बेहद

मामूली हस्ती होने के एहसास ने गमज़दा कर दिया हमें..अपने मामूली होने का दर्द आज समझ आया..

मदद ना करने का ज़ख्म रूह को जला गया..ज़िंदगी क्या सिर्फ किताबी हिसाब है..हम इंसान कितने

बेबस और बंधे है कभी ना उड़ने वाले पंखो से...दर्द देख समझ कर भी कुछ  ना पाए है...यक़ीनन,

आज अपने मामूली होने के एहसास ने ग़मज़दा कर दिया हमें ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...