Monday 22 June 2020

कफ़न सर पे बांध के सरहद पे लड़ते है जांबाज़...जान की परवाह किए बैगेर अपना फ़र्ज़ निभाते है

यह जांबाज़...लौट के क्या घर जाए गे,यह भी नहीं जानते यह जांबाज़..सीखने के लिए इन से इतना कुछ

है कि थोड़ा सा भी इन से समझ पाए तो एक सही इंसान ही बन पाए गे हम...कहर और दर्द के सैलाब

से क्यों घबरा रहे है लोग..अरे,घरों मे है कोई सरहद पे नहीं है आप..घर की जंग बेशक मुश्किल है,पैसो

की भी परेशानी है..पर क्या ज़िंदगी हमेशा ऐसी ही रहने वाली है...कुदरत कब कैसे सब ठीक कर देती

है,इंसान कब समझ पाता है..वो तब भी रोता है जब घर से बाहर काम पे जाता है..शायद यह इंसान

ऐसा ही होता है..जो किसी भी हाल मे खुश नहीं रहता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...