Monday 8 June 2020

यह कैसी सुबह है जिस मे नया भी है और नया कुछ भी नहीं है...निकल रहे है कितने अपनी राहो पे,

कुछ डरे हुए कुछ जरुरत से जयदा महके हुए...संतुलन ज़िंदगी का नाम है..जयदा दुखी या जयदा

महकना दोनों ही असंतुलन का नाम है..यह धरा भी अपनी और आसमां भी अपना है..सम्भालिए खुद

को इसी का नाम जीवन है...बेखबर खुद से इतने भी ना हो कि साँसे दांव पे लग जाए..ना डरे कहर से

इतना कि ज़िंदगी नाम बदनाम हो जाए...पाँव ज़मी पे रखिए जरा संभल के,ज़िंदगी जीने का ही तो नाम है 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...