गुमान हुआ तुझ को पा कर...अभिमान है तुझे खुद को सौंप कर...हर बुलंदी छू ले प्रेम की,आसमां तो
आज भी ग़वाह है इस परिशुद्ध प्रेम की सीमा का...जब आसमां सारा हमारा है तो क्यों ना खिले जी भर
कर...हवा भी हमारी फ़िज़ा भी हमारी,जीवन है प्रेम की उज्जवल बाती...खिले है जब साथ-साथ,मुस्कुराए
है जब एक साथ...खुशबू बिखेरी है एक साथ..तो साथी मेरे,जीवन छोड़े गे भी एक साथ...प्रेम की यही
तो पराकाष्ठा है,संग जिए ,संग एक साथ मुरझाना भी तो है......यही तो प्रेम है,प्रेम का यही तो धाम है..
आज भी ग़वाह है इस परिशुद्ध प्रेम की सीमा का...जब आसमां सारा हमारा है तो क्यों ना खिले जी भर
कर...हवा भी हमारी फ़िज़ा भी हमारी,जीवन है प्रेम की उज्जवल बाती...खिले है जब साथ-साथ,मुस्कुराए
है जब एक साथ...खुशबू बिखेरी है एक साथ..तो साथी मेरे,जीवन छोड़े गे भी एक साथ...प्रेम की यही
तो पराकाष्ठा है,संग जिए ,संग एक साथ मुरझाना भी तो है......यही तो प्रेम है,प्रेम का यही तो धाम है..