बचपन क्या कमाल था,जैसे एक उड़ती हुई पतंग था..गुलाबी फ्रॉक पहने और गुलाबी रिबन बांधे जैसे
एक इंद्रधनुष था...बेफिक्र थे कोई मलाल ना था..जब जी चाहा सो लिए,जीवन जैसे मदमस्त और रंगो
का प्यारा सा जाम था...पढ़ते-पढ़ते सो गए,किसी ने उठाया तो सोने का अभिनय करते रहे...लगता था
उस वक़्त जो सिखा रहे है बाबा-माँ,वो अनसुना हो गया..मगर आज वो सब कुछ याद है इतना ,जैसे
पर्चे देते हुए सबक भी याद नहीं था उतना....
एक इंद्रधनुष था...बेफिक्र थे कोई मलाल ना था..जब जी चाहा सो लिए,जीवन जैसे मदमस्त और रंगो
का प्यारा सा जाम था...पढ़ते-पढ़ते सो गए,किसी ने उठाया तो सोने का अभिनय करते रहे...लगता था
उस वक़्त जो सिखा रहे है बाबा-माँ,वो अनसुना हो गया..मगर आज वो सब कुछ याद है इतना ,जैसे
पर्चे देते हुए सबक भी याद नहीं था उतना....